बेरोजगार भाई





लघु कहानी _ **बेरोजगार भाई **

लेखक श्याम कुंवर भारती 

किशोर को उसकी पत्नी खूब खरी खोटी सुना रही थी ।अपने तीनो भाईयो को पढ़ाने लिखाने और नौकरी दिलाने में पूरी जिंदगी लगा दिया आखिर क्या मिला आपको ।घर पर बेरोजगार बनकर बैठे हुए हैं।ऊपर अपनी छोटी बहन माला का भी विवाह कराया ।कितना खर्चा किया ।अपने भाई बहनों के लिए कई खेत भी बेच दिया।अब मेरे चारो बच्चो का भविष्य क्या होगा ।
आपके तीनो भाई नौकरी पाकर बड़े घमंड में रहते है ।उनकी पत्नियां भी बात बात पर मुझे ताना मारती है की मेटा पति तो पढ़ लिखकर भी बेरोजगार बनकर बैठा हुआ ।खेती किसानी करता है।
किशोर ने मुस्कुराते हुए कहा _ अब बस भी करो बाबा कितना गुस्सा कर रही हो।मैंने जो भी किया अपने भाईयो और बहन के लिए किया।एक बड़े भाई का फर्ज निभाया ।
लेकिन वे तीनों तो अपना फर्ज नही निभा रहे हैं।कभी किसी जरूरत पर पैसे मांगों तो बहाना बनाकर टाल देते हैं।सारा घर का खर्चा आप उठाते हो।बिजली,पानी ,टेलीफोन ,खाद, बीज और मजदूरी आप देते हो और तीनो आकार अपनी अपनी गाड़ियों में लादकर ढेर सारा अनाज ले जाते हैं।अब मैं सबकी मनमानी नहीं चलने दूंगी।किशोर की पत्नी दिव्यानी बहुत गुस्से में थी ।मेरे दोनो लड़को का एडमिशन इंजीनियरिंग कॉलेज में कराना है।कितना पैसा लग रहा है।लेकिन तीनो भाई कोई मदद करने को तैयार नहीं हैं।
तुम पहले शांत हो जाओ भाग्यवान मैं उनसे बात करता हूं ।सब ठीक हो जायेगा।किशोर ने अपनी पत्नी को समझते हुए कहा।
तभी उसके माता पिता आ गए।उसके पिता रघुनंदन ने कहा _ बेटा मुझे पता है तुमने अपने भाई बहनों और पूरे परिवार के लिए कितना त्याग और बलिदान किया है ।तुम रहने दो मैं उन तीनो नालायको से बात करूंगा।
तुम्हारी नौकरी लग रही थी लेकिन थी तुमने नौकरी नही लिया क्योंकि अगर तुम यहां से चले जाते तो फिर घर कौन संभालता।तुम्हारे चारो भाई बहन बहुत छोटे थे।
तुम्हारी मां को गठिया हो गया है।और मैं शुगर और हार्ट का मरीज हूं ।हमदोनो कुछ कर नहीं सकते थे।
अगर तुम नहीं होते तो कोई कुछ भी नही कर सकता था।तुम्हारी पत्नी ने भी घर को बड़ी बखूबी से संभाला है।अपने देवरों और ननद की पढ़ाई लिखाई और विवाह में हर कदम पर थी आर तुम्हारा साथ दिया है।
इस घर और मेरी सारी जमीन जयाजाद पर सबसे ज्यादा तुम दोनो का हक है।
पापा मुझे जमीन जायदाद और घर का कोई लालच नही है।मुझे तो बस अपना हंसता खेलता और भरा पूरा परिवार चाहिए।किशोर ने अपने पिता से कहा।
तुम चुप रहो बेटा मेरी बड़ी बहू दिव्यानी बिल्कुल सही कह रही है।मेरे तीनो बेटो की मनमानी नहीं चलेगी।तुम्हारे पापा उनसे आज ही बात करेंगे।तुम पांचों मेरे लिए एक जैसे हो ।
अगर तुम्हारे भाई तुम्हारे बेटो के एडमिशन लिए पैसे नहीं देंगे तो तुम मेरे गहने बेचकर उनका नाम कोलेज में लिखा दो।
रघुनंदन जी ने अपने तीनो बेटो से फोन पर बात कर उन्हे पैसे भेजने को कहा और खूब डांटा लेकिन तीनो ने अपने पिता से भी बहाना बनाकर मना कर दिया।
रघुनंदन जी को बहुत दुख हुआ ।किशोर की मां अपने बेटो की इस हरकत पर रोने लगी ।वो अपना गहना निकालकर किशोर को बेचने के लिए देने लगी ।लेकिन किशोर और दिव्यानी ने मना कर दिया।
दिव्यानी ने कहा _ अम्मा जी आप गहने मत बेचिये ।मुन्ना के पापा बैंक से एजुकेशन लोन लेने का प्रयास करेंगे अगर मिल गया तो ठीक है नही तो मैं मैं अपना गहना बेच दूंगी।
संयोग वस किशोर को बैंक से अपने दोनो बेटो के एडमिशन हेतु एजुकेशन लोन मिल गया।उसने अपने दोनो बेटो को एडमिशन करा दिया।
घर को चलाने और अपने माता पिता के इलाज के लिए उसने कुछ अनाज बेच दिया।
कृषि लोन के नाम पर उसने अपना कुछ खेत बंधक रखकर एक ट्रैक्टर ले लिया।साथ ही दूसरे किसान जिनके पास काफी जमीन थी लेकिन घर में कोई खेती करने वाला नहीं था।उनसे फसल का आधे अनाज देने के शर्त पर जमीन लेकर गेहूं, चना,मटर,सरसो और सब्जियां लगा दिया।ट्रेक्टर से वो अपना खेत भी जोतने लगा और किराए पर दुसरो का भी खेत जोतने लगा।इससे उसकी आमदनी अच्छी होने लगी थी।उसके तीनो भाईयो ने तो घर से जैसे मुंह ही मोड़ लिया था।
कुछ महीनो बाद सारे खेतो मे उम्मीद से ज्यादा फसल पैदा हुई।
उसमे बाकी किसानों का अनाज देने के बाद भी कई क्विंटल अनाज बच गया।साल भर का खाने का अनाज रखकर बाकी अनाज बेचकर उसने ट्रेक्टर की कुछ किस्त चुकता किया।घर के बिजली, पानी, टेलीफोन, खाद, बीज और बाकी जरूरी चीजों पर खर्चा कर दिया।
इस तरह बेरोजगार रहते हुए भी उसने खेती करके घर को बखूबी संभाल लिया था।उसके माता पिता ऐसे लायक बेटा को पाकर बहुत ही खुश थे।लेकिन बाकी तीनो बेटो की बेईमानी से वे बहुत दुखी थे।
तभी कोरोना काल शुरू हो गया।सरकार के आदेश पर सब तरफ लॉक डाउन लग गया।सब कुछ बंद हो गया।
किशोर के तीनो भाई जिन प्राइवेट कंपनियों में काम करते थे वे सभी बंद हो गई और तीनो को नौकरी चली गई।
तीनो अपने परिवार सहित अपने गांव चले आए ।किशोर अपने तीनो भाईयो को देखकर बहुत खुश हुआ ।लेकिन उसके पिता ने उन तीनो को घर के अंदर आने से मना कर दिया।
अब इस घर पर तुम तीनो का कोई हक नही।तुम्हारे हिस्से की जमीनें तुम्हारे बड़े भाई ने बेचकर तुम तीनो की पढ़ाई लिखाई और विवाह में खर्च कर दिया।लेकिन तुम तीनो ने उन जमीनों को फिर से वापस लेने के लिए एक रुपया नही दिया।इतना ही नही घर के खर्चे चलाने और हम दोनो के इलाज में भी पैसे देने में बेशर्म बनकर बहाना बनाते रहे।
अब जाओ जहा जाना है।मेरा बस एक ही बेटा है किशोर और वही इस घर में अपने बाल बच्चो के साथ रहेगा।
तीनो को पत्नियां केस करने की धमकी देने लगी।
रघुनंदन ने कहा _ मैं अभी जिंदा हूं अपनी जायजाद मैं जिसको चाहूं वसीयत के रूप में लिख सकता हूं। शौक से केस करो।मैं हम दोनो मां बाप तुम्हारे बड़े भाई के पक्ष में खुद गवाही देंगे और कोर्ट को बताएंगे तुम्हारे बड़े भाई ने तुम तीनो के लिए क्या क्या किया और तुम तीनो ने हमारे और अपने बड़े भाई के साथ क्या किया।
किशोर के पिता बहुत गुस्से मे थे।
किशोर ने इन्हे शांत करते हुए कहा _ पापा तीनो छोटे है । इनसे गलती हो गई इनको माफ कर दे।
लेकिन उसके पिता टस से मस नहीं हुए।उनको अपने तीनो बेटो की बेशर्मी और बेईमानी पर बहुत नाराजगी थी।
तीनो भाईयो को अपनी गलती का एहसास हुआ ।तीनो ने अपने माता पिता,भाई और भाभी से अपनी गलतियों के लिए माफी मांग लिया।
उनकी मां ने कहा _ मेरे बच्चो तुम सब किसी इंसान को धोखा दे सकते हो बेईमानी कर सकते हो लेकिन भगवान से नही कर सकते ।देखो भगवान ने तुम तीनो की बेईमानी की सजा कोरोना के रूप में दिया।तुम सबको जिस नौकरी पर घमंड था वही चली गई।फिर लौटकर घर पर ही आए।
आदमी चाहे कितनी ऊंचाई पर और जहा भी चला जाए लेकिन अपनी बुनियाद को नहीं छोड़ना चाहिए वरना जमीन पर चारो खाने चित हो जाता है जैसे तुम सबकी हालत है।
मां ने अपनी तीनो बहुओं को समझाते हुए कहा _ औरत घर को जोड़ती है तोड़ती नही है ।लेकिन तुम तीनो ने भी अपने अपने पतियों को खूब बहकाया ।अब बोलो कहा जाओगी तुम तीनो ।
उन तीनो ने भी अपनी गलतियां मान लिया।
अब सबको अपने बेरोजगार बड़े भाई का महत्व समझ में आया।
पूरा परिवार मिलकर कोरोना का मुकाबला करने में लग गया था।
तीन सालों तक सबने अपने बड़े भाई के साथ खूब कृषि कार्य किया।घर को संभाला।चौथे साल तीनो को फिर दूसरी कंपनियों में नौकरी लग गई। कुछ सालो बाद बेची गई जमीने फिर खरीद लिया।नई जमीनें भी खरीद लिया। पुराने मकान को तोड़वाकर बड़ा मकान बनवा दिया।
हर महीने तीनो पैसा भेज देते थे।
अपने माता पिता की सेवा करने और बड़ी भाभी का हाथ बंटाने हेतु दो बहुएं हमेशा गांव पर रहती थी । बारी बारी से एक की पत्नी अपने पति के साथ जाती थी।

समाप्त
लेखक _ श्याम कुंवर भारती
बोकारो झारखंड
मो.9955509286

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2 Comments

बेहतरीन और खूबसूरत चित्रण

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Gunjan Kamal

05-Dec-2023 11:44 PM

👌👏

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